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बात उन दिनों की है जब दिल सच्चे ओर मकान कच्चे होते थे

बात उन दिनों की है जब दिल सच्चे ओर मकान कच्चे होते थे





बात उन दिनों दिनों की जब
दिल सच्चे और मकान कच्चे होते थे

 छोड़ दिया करते थे फैसले कल पर
आज का समय बीत जाता था कल पर

बात उन दिनों की है जब दिल सच्चे और होते थे

दोस्त दोस्तों की मस्ती में मस्त थे और
ओर न जाने क्यूँ बड़े हो गये

स्कूल को वो हस्ते हुए चले जाना
ओर दिन भर मस्ती से बिताना

वो 2 महीने की छुट्टी लेकर गांव को घूमने जाना

कभी कभी स्कूल bunk करके वो घूमने जाना

वो शाम को जलेबी खाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना


बात उन दिनों की है जब दिल सच्चे ओर मकान कच्चे होते थे






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